Khankah ke Bare me :-

खानकाह के बारे कुछ गौर फ़रमाना  चाहूँगा I खानकाह का माने होता इबादत की पाक जगह, जहाँ पर बड़े बड़े पीर फकीर जिक्र व दुआ फरमाते I इसी तरह हमारे हुजुर साहब की खानकाह कानपुर  में मॉल रोड में स्थित है I

 

हुजुर साहब की खानकाह सिर्फ दो मंजिल की ईमारत ही नहीं बल्कि इबादत की पाक जगह है I जहाँ पर हमारे हुजुर साहब तशरीफ़ फरमाते है I सतह मंजिल पर एक बड़ा सा हाल I मेन दरवाजे  के ठीक सामने हुजुर साहब की गददी है, जिस पर हुजुर साहब तशरीफ़ फरमाते है I ( at the time of Zikr  ) दाहिने हाथ पर एक और गददी है,ज़िक्र के बाद हुजुर साहब इस पर तशरीफ़ फरमाते हैi  हुज़ूर साहब के ठीक पीछे दो छोटे कमरे है जिन्हें अदब की ज़ुबान में हुजरा कहते है i एक हुजरा ए खास है  जो बाएँ हाथ पर है , व दाहिने हाथ पर एक हुजरा ए आम i

हुजरा ए खास में कुछ खास लोगों को ही जाने की इज़ाज़त है व हुजरा ए आम में कई लोग जा सकते है I

ज़िक्र के बाद हुजुर साहब अक्सर अन्दर हुजरे में आराम  फरमाते है I

 

 

पहली मंजिल पर एक बड़ा सा एक और हाल है इस बड़े हॉल को दो भागों में temporary Partion के द्वारा अलग किया गया जो की शाम को दुआ के समय व किसी खास मौके पर खोल जाता है I इस हाल के ठीक पीछे एक बड़ा कमरा है जिसे दवाखाना के नाम से जाना जाता है यहाँ पर दवाएं बनायी जाती है I इस के पीछे गुसल खाने है व छोटा सा बावर्ची खाना भी बना हुआ है I

पहली मंजिल पर एक बड़ा सा हॉल है जिसे कई सरे partion के द्वारा कई कमरो  की शक्ल दी गई है I दूसरी मंजिल पर छत है जिस पर एक बड़ा सा नीम का पेड़ है I

 
 

 

 

ज़िक्र व महफ़िल इ शमा :


आज के इस भौतिक युग में ज़िक्र व महफ़िल ए शमा एक न्यामत है

यह न्यामत आज भी हमें हुजुर साहब की बारगाह में देखने को मिलती है

खानकाह में दिन में तीन मर्तबा व ज़िक्र होता है सुबह चार बजे शाम को चार व शाम को सात  बजे ज़िक्र किया जाता है I हर बुधवार को शाम सात बजे से महफ़िल ए शमा रोशन होती है I साल  में तीन बार महफ़िल इ शमा की जाती है जो बहुत बड़े रुप में होती है जिस में शरीक होने के लिये पुरे हिन्दुस्तान से तशरीफ़ फरमाते है I