Nazrana E Huzur Sahab

               

                                                             नज़राना         

 

हमारे गरीब परवर, फरिश्ता सिफत रह्बर, शहंशाह, फकीर कामिल, आलिम रूहानी शायरी के उस्ताद, हकीम, शुरु ज़िंदगी से ही तमाम दुनियावी ख्वाहिशों  से अलग राहे तरीकत अख्तियार करने वाले, ज़बान की शीरनी और शफकत पर मख्लूक इस कदर फिदा कि लोग खिचे चले आते है, मौज़शाही सिलसिले के पीर और हबीब, उनकी कलम मुबारक ते निकला हुआ ये गुल्दस्ता उन्ही की निगाहे, करम से इस ( website)  की शक्ल में हाजिर है 

               सज़दा ए शौक लिए जाता है काबा कि तरफ

               फिर जुनुं दौड चला अपने मसीहा की तरफ
               
               मुंह पे वो खाक दरे कुए सनम जिसने मली
               उसने फिर मुड के न देखा कभी दुनिया की तरफ़
 

-:: ग़ज़ल ::-

 

जिंदगी गुज़री वफादार गुलामों की तरह|

हम जले कूचए जानां में चराग़ों की तरह ||

 

हो न हो उनका गिरफ़्तार ही होगा कोई | 

जाने क्या कहता रहा दर्द के मारों की तरह ||

 

मुन्तज़िर फूल हैं गुलज़ार में खिलने के लिए |

तुम चले आओ किसी रोज़ बहारों की तरह ||

 

देख कर जी गया उनको कोई मरने वाला |

कौन भूलेगा उसे जो हो ख़ुदाओं की तरह ||

 

कूचए इश्क़ से फिर लौट के आया न गया  |

और निकले भी तो पलटे हैं सदाओं की तरह ||

 

कदमो में नहीं मिलती, तो और कहाँ पाता, इस सर का मुक़द्दर था ये और कहाँ जाता, तेरे हैं करम दाता,,,,,,

दुनिया है यहाँ गम आते  तो है लेकिन. जब तुम नज़र आते हो सब भूल सा जाता है I

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